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इन्द्रो॒ मदा॑य वावृधे॒ शव॑से वृत्र॒हा नृभिः॑। तमिन्म॒हत्स्वा॒जिषू॒तेमर्भे॑ हवामहे॒ स वाजे॑षु॒ प्र नो॑ऽविषत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indro madāya vāvṛdhe śavase vṛtrahā nṛbhiḥ | tam in mahatsv ājiṣūtem arbhe havāmahe sa vājeṣu pra no viṣat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रः॑। मदा॑य। व॒वृ॒धे॒। शव॑से। वृ॒त्र॒ऽहा। नृऽभिः॑। तम्। इत्। म॒हत्ऽसु॑। आ॒जिषु॑। उ॒त। ई॒म्। अर्भे॑। ह॒वा॒म॒हे॒। सः। वाजे॑षु। प्र। नः॒। अ॒वि॒ष॒त् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:81» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग जो (वृत्रहा) सूर्य्य के समान (इन्द्रः) सेनापति (नृभिः) शूरवीर नायकों के साथ (शवसे) बल और (मदाय) आनन्द के लिये (वावृधे) बढ़ता है, जिस (महत्सु) बड़े (आजिषु) संग्रामों (उत) और (अर्भे) छोटे-संग्रामों में (हवामहे) बुलाते और (तमित्) उसी को (ईम्) सब प्रकार से सेनाध्यक्ष कहते हैं (सः) वह (वाजेषु) संग्रामों में (नः) हम लोगों की (प्राविषत्) अच्छे प्रकार रक्षा करे ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि जो पूर्ण विद्वान्, अति बलिष्ठ, धार्मिक सबका हित चाहनेवाला, शस्त्रास्त्रक्रिया और शिक्षा में अतिचतुर, भृत्य, वीरपुरुष और योद्धाओं में पिता के समान, देशकाल के अनुकूलता से युद्ध करने के लिये समय के अनुकूल व्यवहार जाननेवाला हो, उसी को सेनापति करना चाहिये, अन्य को नहीं ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥

अन्वय:

वयं यो वृत्रहा सूर्य इवेन्द्रः सेनाध्यक्षो नृभिः सह वर्त्तमानः शवसे मदाय वावृधे यं महत्स्वाजिषूताप्यर्भे हवामहे तमिदीं सेनाद्यध्यक्षं स्वीकुर्य्याम स वाजेषु नः प्राविषत् ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) शत्रुगणविदारयिता सेनाध्यक्षः (मदाय) स्वस्य भृत्यानां हर्षकरणाय (वावृधे) वर्धते। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदीर्घः। (शवसे) बलाय (वृत्रहा) मेघहन्ता सूर्य इव शत्रूणां हन्ता (नृभिः) सेनासभाप्रजास्थैः पुरुषैः सह मित्रत्वेन वर्त्तमानः (तम्) (इत्) एव (महत्सु) महाप्रबलेषु (आजिषु) संग्रामेषु (उत) अपि (ईम्) प्राप्तव्यो विजयः (अर्भे) अल्पे संग्रामे (हवामहे) आदद्मः (सः) (वाजेषु) संग्रामेषु (प्र) प्रकृष्टार्थे (नः) अस्मान्नस्माकं वा (अविषत्) रणादिकं व्याप्नोतु ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यः पूर्णविद्यो बलिष्ठो धार्मिकः सर्वहितैषी शस्त्रास्त्रप्रहारे शिक्षायां च कुशलो भृत्येषु वीरेषु योद्धृषु पितृवद्वर्त्तमानो देशकालानुकूलत्वेन युद्धकरणाय सामयिकव्यवहारज्ञो भवेत् स सेनाध्यक्षः कर्त्तव्यो नेतरः ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सेनापती, ईश्वर व सभाध्यक्षाच्या गुणांचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची संगती पूर्वसूक्तार्थाबरोबर समजली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जो पूर्ण विद्वान, अति बलिष्ठ, धार्मिक, सर्वांचे हित इच्छिणारा, शस्त्रास्त्रक्रिया व शिक्षणामध्ये अति चतुर, सेवक, वीरपुरुष योद्ध्यामध्ये पित्याप्रमाणे, देशकालाच्या अनुकूलतेने युद्ध करण्यासाठी समयानुकूल व्यवहार जाणणारा असेल त्यालाच सेनापती केले पाहिजे, दुसऱ्याला नाही. ॥ १ ॥