इन्द्रो॒ मदा॑य वावृधे॒ शव॑से वृत्र॒हा नृभिः॑। तमिन्म॒हत्स्वा॒जिषू॒तेमर्भे॑ हवामहे॒ स वाजे॑षु॒ प्र नो॑ऽविषत् ॥
indro madāya vāvṛdhe śavase vṛtrahā nṛbhiḥ | tam in mahatsv ājiṣūtem arbhe havāmahe sa vājeṣu pra no viṣat ||
इन्द्रः॑। मदा॑य। व॒वृ॒धे॒। शव॑से। वृ॒त्र॒ऽहा। नृऽभिः॑। तम्। इत्। म॒हत्ऽसु॑। आ॒जिषु॑। उ॒त। ई॒म्। अर्भे॑। ह॒वा॒म॒हे॒। सः। वाजे॑षु। प्र। नः॒। अ॒वि॒ष॒त् ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब अगले मन्त्र में सभाध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥
वयं यो वृत्रहा सूर्य इवेन्द्रः सेनाध्यक्षो नृभिः सह वर्त्तमानः शवसे मदाय वावृधे यं महत्स्वाजिषूताप्यर्भे हवामहे तमिदीं सेनाद्यध्यक्षं स्वीकुर्य्याम स वाजेषु नः प्राविषत् ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सेनापती, ईश्वर व सभाध्यक्षाच्या गुणांचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची संगती पूर्वसूक्तार्थाबरोबर समजली पाहिजे.